आज देशभर में हरतालिका तीज का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। बता दें कि हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है।
मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा करने के साथ निर्जला व्रत रखने से सुख-समृद्धि , सुखी वैवाहिक जीवन के साथ संतान की प्राप्ति होती है। वहीं दूसरी ओर कुंवारी कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं। इस साल 6 सितंबर को हरतालिका तीज का व्रत रखा जा रहा है। आइए जानते हैं हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र सहित अन्य जानकारी…
हरतालिका तीज पूजा शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, 5 सितंबर, गुरुवार को सुबह 12 बजकर 22 मिनट पर आरंभ चुकी है और 6 सितंबर को दोपहर में 3 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 2 मिनट से 8 बजकर 32 मिनट तक
कुल अवधि- 2 घंटे 31 मिनट का
शाम की पूजा का मुहूर्त- 5 बजकर 26 मिनट से 6 बजकर 36 मिनट तक
हरतालिका तीज पर बन रहा शुभ योग
इस साल हरतालिका तीज पर रवि योग के साथ बुधादित्य योग, हस्त और चित्र नक्षत्र रहेगा। रवि योग की बात करें, तो सुबह 9:24 से 7 सितंबर को सुबह 6:01 तक रहेगा। इसके साथ ही सिंह राशि में बुध और सूर्य की युति से बुधादित्य योग बन रहा है।
हरतालिका तीज 2024 की संपूर्ण सामग्री
मिट्टी का एक कलश, गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर, रेत या काली मिट्टी (माता पार्वती और शिवजी की मूर्ति) बनाने के लिए, लकड़ी का पाटा या चौकी, चौकी में बिछाने के लिए लाल या पीला कपड़ा, चौकी में चारों ओर बांधने के लिए केले के 2-2 पत्ते, नारियल, फूल, बेलपत्र, केले का पत्ता, शमी पत्र, धतूरा फल, धतूरा के फूल, कलावा, अबीर, सफेद चंदन, कुमकुम, आक के फूल,एक जोड़ी जनेऊ, फल, गाय की घी, सरसों तेल, कपूर,धूप, घी का दीपक पंचामृत, मिठाई, तांबे या पीतल के लोटे में जल, सोलह श्रृंगार (चुनरी,काजल, मेहंदी, चूड़ी, सिंदूर, बिंदी, बिछिया, महावर, कंघी, शीशा आदि), मां पार्वती को चढ़ाने के लिए नई हरी साड़ी, शिव जी और गणेश जी के अच्छे वस्त्र।
हरतालिका तीज 2024 पूजा विधि
हरतालिका तीज के दिन सूर्योदय से पहले महिलाएं उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद हाथों में फूल और अक्षत लेकर ‘उमा महेश्वर सायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र बोलते हुए व्रत का संकल्प ले लें। इसके बाद विधिवत तरीके से शिव जी और पार्वती की पूजा कर लें। दिनभर निर्जला व्रत रखें। शाम को प्रदोष काल के लिए पूजा की पूरी तैयारी कर लें। इसके लिए मां पार्वती और शिव जी की मिट्टी की मूर्ति बनाने के साथ मूर्तियों को स्थापित करने के लिए केला और आम के पत्तों से चौकी को सजा लें।
प्रदोष काल के समय पूजा आरंभ करें। सबसे पहले इसके बाद ओम उमाये ० पार्वत्यै० जगद्धात्र्यै० जगत्प्रतिष्ठायै शान्ति रूपिण्यै शिवायै और ब्रह्म रूपिण्यै नमः’ मंत्र का जप करते हुए माता पार्वती की मूर्ति रखें। इसके बाद ओम हराय० महेश्वराय ० शम्भवे० शूलपाणये० पिनाकधृषे० शिवाय० पशुपतये और महादेवाय नमः’ का जाप करते हुए शिव जी की मूर्ति रखें। इसके बाद जल से आचमन करके पूजा आरंभ करें।
मां पार्वती जी को फूल, माला, सिंदूर, कुमकुम, सोलह श्रृंगार अर्पित करें और शिव जी को बेलपत्र, सफेद चंदन, फूल, माला, धोती, अंगोछा, आक का फूल, धतूरा आदि अर्पित कर दें। इसके बाद विधिवत तरीके से भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद घी का दीपक और धूप जलाकर शिव और पार्वती मंत्र, चालीसा के साथ हरतालिका व्रत कथा का पाठ कर लें और अंत में आरती पढ़ लें। इसके साथ ही मां पार्वती को सिंदूर अर्पित करें। इसे बाद में अपनी मांग में लगा सकते हैं। रात भर जागरण करने के बाद दूसरे दिन पूजा पाठ करने के बाद व्रत का पारण करें। इसके साथ ही शिव जी-पार्वती जी की मूर्ति को जल में प्रवाहित कर दें।
कैसे पड़ा इस व्रत का नाम?
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती जी की सखियों ने उनका अपहरण कर जंगल में छिपा दिया था। ताकि माता पार्वती के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर सकें। दरअसल, पार्वती जी शिव जी को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं। इसलिए उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं।
जंगल में एक गुफा के भीतर माता पार्वती ने भगवान शिव की अराधना की और भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की। साथ ही रातभर जागरण भी किया। पार्वती जी के तप से भगवान शिव ने खुश होकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ गया।
हरतालिका तीज व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान माता पार्वती सहन नहीं कर पाई थीं और उन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया था। इसके बाद उन्होंने राजा हिमाचल के घर में अगला जन्म लिया और इस जन्म में भी उन्होंने शंकर जी को ही अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। देवी पार्वती सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं। उनकी ऐसा हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी और उन्होंने नारद जी से बात की। इसके उन्होंने पार्वती जी का विवाह भगवान विष्णु से करने का फैसला लिया। लेकिन देवी पार्वती विष्णु जी से विवाह नहीं करना चाहती थीं। ऐसे में उनके मन की बात जानकर उनकी सखियों ने उनका हरण कर लिया और जंगल में चली गईं।
मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर भोलेनाथ की स्तुति की और रात्रि में जागरण किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का त्याग भी कर दिया था। उनकी ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली। पार्वती के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने दर्शन दिए और इच्छा अनुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसके बाद से हर साल महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं।
डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है।

Author: MP Headlines



