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800 वर्ष पुर्व से विराजित हैं धामनोद की चमत्कारिक श्री कालिका माता

दर्शनीय श्री कालिका माता मंदिर में अष्टमी – नवमी पर नवदुर्गा स्वरूप के दर्शन

नितेश शर्मा, प्रधान संपादक, एमपी हेडलाइंस, की नवरात्रि पर विशेष रिपोर्ट

रतलाम। मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के  रतलाम-बांसवाड़ा मार्ग पर धामनोद नगर में प्राचीनतम श्री कालिका माता मंदिर स्थित है  प्राचीनतम श्री कालिका माता मंदिर की स्‍थापना विक्रम संवत 1272 वैशाख शुक्ल पक्ष की तीज अक्षय तृतीया को हुई और वर्ष 1980 में पुनर्निर्माण किया गया। इस मंदिर को करीब 800 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस पर सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों की आस्था है। जिले सहित कई स्थानों के धर्मावलंबी मां के दरबार में शीश नवाने पहुंचते हैं। नवरात्रि में गरबा का भव्य आयोजन और जून-जुलाई में सप्त दिवसीय शतचंडी महायज्ञ का आयोजन होता है। मंदिर के गर्भगृह में मां कालिका माता के आसपास मां सरस्वती और मां अम्बे विराजित है। गर्भगृह के बाहर परिक्रमा में नौ देवी शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री माता विराजित हैं। मंदिर परिसर में दोनों तरफ गंगा और यमुना माता की प्रतिमा विराजित है। मंदिर परिसर के बाहर शिव मंदिर, वीर तेजाजी महाराज मंदिर, विशाल शिव प्रतिमा और प्रवेश द्वारा विशेष आकर्षण का केंद्र है।

चमत्कारिक है प्राचीनतम श्री कालिका माता मंदिर

विक्रम संवत 1272 वैशाख शुक्ल तीज (अक्षय तृतीया) के दिन धामनोद में सूर्यवंशी कुं. धामदसिंह गोहिल सहित पाँच भाइयों द्वारा माँ कालिका माता के मंदिर की स्थापना कर धामनोद बसाया गया था। धीरे-धीरे धामनोद एवं बड़ी विरासत के रूप में बदल गया। वर्षों बीतने के बाद वर्ष 1980 में माँ कालिका के मंदिर निर्माण की विचारधारा लोगों में प्रकट हुई। इस पर 15 दिन में ही ट्रस्ट संचालित करने के लिए पंजीयन करवाया गया, जिसमें रामचंद्र मिस्त्री सहित करीब बारह सदस्य बनाए गाए। मंदिर निर्माण के लिए सभा बुलाई गई। इसमें निर्णय लिया गया कि पुराने मंदिर को न छेड़ते हुए अभी आसपास का दाँचा तैयार कर लिया जाए। 13 फीट की सीमा में कॉलम खोदकर तैयार किए गए। मंदिर निर्माण कार्य चालू हो गया। मंदिर निर्माण के लिए राशि 10,000 एकत्रित हुई। एक दिन मंदिर निर्माण कार्य के लिए कॉलम पूर्ण होने के पश्चात दोपहर में कार्य बंद होने पर मंदिर परिसर में मातारूपी एक कन्या ने मंदिर में जाकर परिक्रमा कर दर्शन कर चली गई। उसके कुछ समय पश्चात ही पुराना मंदिर छज्जा सहित गिर गया और माँ कालिका की मूर्ति पर मुकूट सहित पूर्ववत यथास्थान पर ही रही। साथ ही मंदिर में लगे बल्ब व पंखा भी सुरक्षित पाया गया। मंदिर का मलबा गिरने से मूर्ति को कोई क्षति तक नहीं पहुँची।

मंदिर गिरने के बाद उसी रात्रि में रामचंद्र मिस्त्री को स्वप्न में उसी कन्या ने कहा कि मैं मंदिर के मलबे में बैठी हुं, पहले मंदिर में मेरा स्थान बनाओ, फिर आगे आसपास बनाना, जिसके पश्चात शिल्पकारों से सलाह लेकर मंदिर निर्माण कार्य शुरू हुआ। अहमदाबाद के पास मैसूर में एक शिल्पकार के पास जाकर शिल्पकला पुस्तक की फोटोकॉपी करवाकर उसकी जिल्द बनवाई। पुस्तक का अध्ययन कर 18 फीट की नींव खोदी गई, जिसमें से मानव कंकाल व कोयला मिला। विधि-विधान से नींव में मंदिर की आधारशिला रखी गई। जमीन तल से लेकर शिखर तक की ऊँचाई 49 फीट है।

मंदिर के मुख्य भाग गृभगृह की सीमा 13 X 13 फीट है। मंदिर की शतचंडी एवं देवी प्रतिष्ठा समारोह दिनांक 03 जून 1991 से 07 जून 1991 को हुई। मूर्ति प्रतिष्ठा 07 जून 1991 की दोपहर 12 बजकर 16 मिनट पर आचार्य भेरूशंकरजी दाधिच चित्तोड़गढ़ (राजस्थान) के सानिध्य में सम्पन्न हुई। मंदिर में आज तक 46 लाख रुपए खर्च हुए हैं।

निस्वार्थ सेवा में जुटे रहते थे रामचंद्र मिस्त्री

 

मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात एक बार फिर माँ के दर्शन उसी कन्या के रूप में मंदिर परिसर में हुए और कहा कि माँग क्या चाहिए? तो माँ से आशीर्वाद माँगा। उसी स्थान से कन्या रूपी माँ ने खोली में चावल प्रकट हो गए थे। मंदिर निर्माण से लेकर अंतिम सांस तक रामचंद्रजी मिस्त्री ने अपना जीवन माँ के मंदिर निर्माण कार्य में निःशुल्क रूप से कार्य में लगा दिया। श्री रामचन्द्र जी मिस्त्री का स्वर्गवास दिनांक 10 सितम्बर 2018 को हुआ, कालिका माता मंदिर निर्माण  में इनका शुरू से आखरी तक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे लेखराजजी मिस्त्री व दासाहब के नाम  से भी जाने जाते थे। वही इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मालवा के  अलावा भी देश के विभिन्न  क्षेत्रों के इंजीनियर  मशीनरी कार्य के लिए दासाहब के पास  आते थे। वे उनकी  समस्या का समाधान  तुरंत ही सारे कार्य  छोड़कर करते थे। नगर व आसपास के  क्षेत्रों में भी  मंदिर निर्माण  में  इंजीनियरिंग मामले में  अहम योगदान रहा है।

साठ वर्षों से सेवारत हैं आचार्य परिवार

मंदिर में गत साठ से अधिक वर्षों से पुजारी रामनारायण आचार्य सेवा दी हैं। उनके निधन 03 अगस्त 2017 के बाद से उनके पुत्र सत्यनारायण शर्मा आचार्य सेवा कर रहे हैं।

गरबा महोत्सव में विशेष माताजी के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन
नगर के प्राचीन श्री कालिका माता मंदिर प्रांगण में कई वर्षों से गरबा रास का आयोजन हो रहा है। अष्टमी व नवमी पर नवदुर्गा के स्वांग (स्वरूप) के दर्शनों का लाभ मिलता है। इस दिन रात्रि 4 बजे तक आयोजन चलता रहता है। महाआरती में हजारों धर्मालु शामिल होते हैं।

 

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Author: MP Headlines

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