गीतिका
बड़ी ही क्रूर यह दुनिया गरीबों को सताती है।
नशे को बेच कर इसको बुराई भी बताती है।।
घरों में बैठ कर वामा बुरे निज भाग को कोसे।
घुटे भीतर ही भीतर में व्यथा को पर छुपाती है।।
दया आती है जब देखे तड़पता दर्द से प्रिय वर।
बिलखती है भड़कती है नसीबा बद बनाती है।।
भले कितना बुरा भरतार हो पूजा करे माई।
पधारें देर से भी तो गरम खाना खिलाती है।।
कहे संसार जो इसको है देवी रूप में वामा।
नहीं यह बात भी मिथ्या तभी तो यह पुजाती है।।
पंकज शर्मा “तरुण “
मोती महल,गायत्री नगर
पिपलिया मंडी जिला मंदसौर (मध्य प्रदेश)

Author: MP Headlines



