कला संस्कृति को जीवित रखने वाला एक परिवार 50 वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहा है
सैलाना। रतलाम जिले के सैलाना नगर में एक परिवार ऐसा आता है जो देवास जिले के कन्नोद से अपनी आजीविका के लिए करीब 50 वर्षों से अधिक समय से बहुरूपिया कला को जीवित रखे हुए है। यह कला पहले के जमाने में बहुत प्रसिद्ध थी और आज भी इसका अपना एक विशेष महत्व है।
बहुरूपिया अर्थात रूप बदलकर आना, घूमना और लोगों का ध्यान आकर्षित करना इस कला में पारंगत है एक परिवार जो सैलाना में अपनी कला का प्रदर्शन करता है। यह कलाकार देवास जिले के कन्नोद ग्राम के रहने वाला है, जो वर्ष में सप्ताह भर 15 दिन के लिए आते रहे हैं।

बहुरूपिया कला का महत्व
पहले के जमाने में रंजन भाट आते थे और करीब 15 दिनों तक रूप बदल-बदल कर घूमते थे। उनकी कला की सार्थकता यह थी कि नगर के बच्चों का झुंड उनके साथ घूमता था। वह भगवान का रूप लेकर, राक्षस का रूप लेकर, देवताओं का रूप लेकर घूमते थे और बच्चों के साथ हंसी-मजाक करते थे।
वर्तमान में बहुरूपिया कला
आज भी पप्पू भाट अपने पिताजी की कला को आगे बढ़ा रहे हैं। वह हर वर्ष करीब 15 दिनों के लिए सैलाना आते हैं और अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। वह न केवल पुराने अवतारों का रूप धारण करते हैं, बल्कि अच्छी फिल्मों के किरदार भी बनकर आते हैं।
कला को जिंदा रखने का संघर्ष
पप्पू भाट ने बताया कि उन्होंने अपने पिताजी से यह कला सीखी है और उनके बाद इसी को आजीविका का साधन बना लिया है। वह कहते हैं कि आज के दौर में यह कला कहीं-कहीं चुनावों में प्रचार के लिए उपयोग की जाती है, लेकिन वह अपनी कला को जिंदा रखने के लिए प्रयासरत हैं।
समाज का समर्थन
नगर के समाजजनों का कहना है यह कला और इसके कलाकार कम हैं, इसलिए हम उनको पूरा सहयोग करते हैं ताकि वो सैलाना की अच्छी छवि लेकर जाएं। ज्वेलर्स व्यापारी ओमप्रकाश सोनी, बसन्तिलालजी संघवी ने कहा कि यह कला बच्चों को हमारे धार्मिक इतिहास के बारे में जानने में मदद करती है और उनका ज्ञान बढ़ाती है। सुमित रतनलालजी रांका ने भी इस कला के महत्व को बताया और कहा कि पप्पू भाट हर वर्ष अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और अपने पिताजी की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

Author: MP Headlines



