बरसते पानी में निकले सामूहिक चल समारोह, श्री गणेश मूर्तियों का हुआ विसर्जन

सैलाना। सैलाना नगर सहित पूरे क्षेत्र में दिखा आस्था का सैलाभ  दस दिवसीय श्री गणेश उत्सव के उपरांत आज अनंत चतुर्दशी पर अपने घरो में विराजे पंडालो में  विराजे गणेश जी को भावविभोर होंकर महाआरती कर विदाई दी गई। आज दिन भर हाई अलर्ट पानी बरसाता रहा नगर में सुबह से ही गणेशजी की मूर्तियों का विसर्जन आरंभ हो गया था।  गाजे बाजे ढोल बैंड की धुन पर बरसते पानी मे श्रद्धालु नाचते गाते निकले।

नगर के विभिन्न क्षेत्रों से पंडालो से श्रीगणेश विसर्जन के लिए चल समारोह निकाले गये। नगर के अति प्राचीन श्री चिंता हरण श्रीगणेश मंदिर पर भी दोपहर  पश्चात महाआरती की गई एवं प्रसादी वितरण की गई व श्री गणेशजी की पोशाक बदली गई ,जिसे जल में ठंडा किया जाता है।श्रद्धालुओं ने चोले को स्पर्श कर धर्म लाभ के साथ आशिर्वाद लिया।

सैलाना प्रशासन व  नगर परिषद ने चिन्हित,चार जगहों देवरी चौक, पैलेस चौराहा दिलीप मार्ग, एवं विक्टोरिया तालाब पर सभी मूर्तियां एकत्रित करने की व्यवस्था की गई थी।
नगर की आम जनता द्वारा उक्त स्थान पर अपने घर विराजे छोटी-छोटी श्री गणेश की मूर्तियों को उक्त स्थान पर रखा गया था न प अधिकारी मनोज शर्मा ने बताया कि सभी श्री गणेश मूर्तियों को वाहन में ले जाकर निर्धारित स्थान माही नदी पर विसर्जन किया गया। इस कार्य को सुचारू रुप से करने केलिए दस से पन्द्र कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंप गई थी।
विक्टोरिया तालाब मूर्ति एकत्रित स्थल पर राजस्व विभाग के कर्मचारी व पुलिस कर्मी उपस्थित थे।

आज दिनभर अनु विभागीय अधिकारी तरुण जैन एसडीओपी पुलिस नीलम बघेल सैलाना सैलाना पुलिस थाना प्रभारी सुरेंद्र सिंह गडरिया व पुलिस टीम द्वारा पूरे क्षेत्र में गणेश विसर्जन के तहत कोई अनहोनी न हो की जाकारी चाकचौबन्द पर पैनी निग़ाहें रखे हुऐ थे।


श्रीगणेश विसर्जन के पीछे की मान्यता
श्रीगणेश विसर्जन के पीछे महर्षि वेदव्यास से जुड़ी एक बेहद प्रसिद्ध पौराणिक कथा है।  कहते हैं जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए भगवान गणेश का आह्नान कर उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की तो भगवान ने इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन प्रार्थना को स्वीकार करने के बाद गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी ‘कि प्रण लो ‘मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा’। तब वेदव्यासजी ने कहा कि भगवन आप देवताओं में अग्रणी हैं, विद्या और बुद्धि के दाता हैं और मैं एक साधारण ऋषि हूं। यदि किसी श्लोक में मुझसे त्रुटि हो जाए तो आप उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करें।

इस तरह गणपति जी ने सहमति देते हुए महाभारत की रचना शुरु कर दी। दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ, इतनी मेहनत से महाभारत की रचना कर रहे गणेश जी को इस कारण थकान तो होनी ही थी, इस महाग्रंथ की रचना करते समय उन्हें पानी पीना भी वर्जित था।

अब धीरे धीरे गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़ने लगा लेकिन, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। उस स्थिति में वेदव्यास जी ने श्री गणेश जी को पानी में बिठा दिया था इस तथ्य के आधार पर ही गणेश उत्सव के 10 दिवस के बाद मंगल दाता श्री गणेश जी को जल में विसर्जन करने की परंपरा हमारे हिंदू धर्म में आरंभ हुई।

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Author: MP Headlines

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