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पहाड़ी पर बिना नींव के बना है पांडवकालीन कंवलका माता मंदिर

नितेश शर्मा, प्रधान संपादक, एमपी हेडलाइंस की नवरात्रि पर्व पर विशेष रिपोर्ट

रतलाम। मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में रतलाम इंदौर मार्ग पर  ग्राम सातरुंडा में पांडवकालीन कंवलका माता मंदिर स्थित है।  मातारानी का यह मंदिर वन विभाग के 256 हेक्टेयर भूमि में फैली करीब पांच सौ गज ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर बिना नींव के पहाड़ी पर बना हुआ है। मंदिर निर्माण में उपयोग हुए शिलाएं एक के ऊपर एक रखी हुई हैं। इनके जोड़ के लिए किसी प्रकार का पदार्थ उपयोग में नहीं लिया गया है।यहां शारदीय व चैत्र नवरात्र के अलावा वर्षभर भक्तों का आना जाना लगा रहता है।

पांडवों ने गुजारा था अज्ञातवास का समय
इस मंदिर का कोई प्रमाणित शिलालेख नहीं है। किवदंती है कि पांडव अज्ञात वास के समय यहां आए थे। पांडवों की गायें चरती हुई गुम हो गई। भीम ने उन्हें खोजने के लिए 6 छोटे-छोटे रुंडे (पहाड़ी) बनाई थी। तब भी गायें नहीं दिखी तो एक मुठ्ठी और मिट्टी डालकर बड़ी पहाड़ी बनाई और उस पर चढ़कर देखा तो उन्हें मांडव में गायें दिखाई दी। गायों को रोकने भीम ने वहीं से पत्थर का लाट फेंक, जो आज भी मांडव में भीम लाट के नाम से प्रसिद्ध है। छोटे-छोटे रूंडे होने क्षेत्र को सातरुंडा कहा जाता है।

कहा जाता है कि इसके बाद पांडवों द्वारा कंवलका माता मंदिर को अन्य जगह से उड़ाकर लाया गया व यहां पर माता की स्थापना की गई। संवत 1171 में उत्तमगिरी द्वारा कंवलका माता की आराधनातपस्या वटवृक्ष पर उल्टा लटक कर की गई। इसके बाद उन्हें माता की सेवा का सौभाग्य मिला था। यह वटवृक्ष आज भी यहां स्थित है।

उल्टा स्वस्तिक बनाकर मांगी जाती है मन्नत
संतान प्राप्ति के लिए निसंतान दंपतियों द्वारा मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वस्तिक बनाकर मन्नत मांगी जाती है। महिलाएं मंदिर के पश्चिम भाग में गोबर से उल्टा स्वास्तिक बनाती हैं और मनंत पुरी होने पर कुमकुम का सीधा स्वास्तिक बनाकर बड़ के पेड़ पर इच्छानुसार लकड़ी, लोहे, स्टील चांदी का झुला चढ़ाती हैं। हर साल दोनों नवरात्रि में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती हैं। नवरात्रि में मंदिर के पुजारियों द्वारा एक दिवसीय यज्ञ का आयोजन किया जाता है। सातरुंडा कंवलका माता जी को भक्तों द्वारा मदिरा पान कराया जाता है। प्रतिवर्ष हरियाली अमावस्या पर यहां मेला लगता है। इसमें प्रदेश के कई जिलों के अलावा राजस्थान, गुजरात से भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।

करीब पांच गज की पहाड़ी पर कंवलका माता के दर्शन के लिए जाने हेतु 350 सीढ़िया बनाई गई है। जिला प्रशासन ने सातरुंडा कंवलका माता मंदिर को ग्रामीण पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना भी बनाई है।

मंदिर के पुजारी रामेशगिरी गोस्वामी व अमितगिरी गोस्वामी ने बताया कि माता के चमत्कार व प्रसिद्धि आसपास के जिलों के अलावा कई प्रदेशों में भी है। भक्त दूरदूर से मनोकामनाएं लेकर माता के दरबार में आते हैं और कंवलका माता सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। नवरात्र के चलते प्रतिदिन शाम को माता का आकर्षक श्रंगार किया जा रहा है। नवरात्रि के चलते भक्तों के दर्शन की चलित व्यवस्था की गई है।

मंदिर को लेकर हैं यह तीन मान्यताएं
चोरों ने पुजारी के पुत्र की हत्या की, उन्हें तीन पुत्र और हुए
200 साल पहले मंदिर में गुप्त धन की अफवाह सुन चोरी की नियत से घुसे चोरों ने पुजारी पुत्र को फांसी लगाकर मार दिया। पुजारी भुवानी गिरी को मां कंवलका ने वरदान दिया कि तेरे 1 पुत्र के बदले 3 पुत्र दूंगी और प्रथम पुत्र के गले में वहीं फांसी के फंदे का निशान होगा। जब भुवान गिरी के यहां प्रथम पुत्र हुआ तो उसके गले में फांसी के फंदे का निशान मिला। भुवानी गिरी ने प्रथम पुत्र प्रताप गिरी और दो छोटे भाई शंकर गिरी व शिव गिरी कुल 3 तीन पुत्र के वंशज मां कंवलका की सेवा पूजा कर रहे हैं। वर्तमान में रमेश गिरी गोस्वामी व परिवारजन मां की पूजा-अर्चना कर रहे हैं।

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Author: MP Headlines

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