कविता
चौराहे पर खड़ा आदमी, प्रश्न चिन्ह है बना हुआ।
रिक्त खेत खलिहान चिढ़ाते,सूरज सिर पर तना हुआ।।
खेत बनाने की आशा में, हरे पेड़ सब काट दिए।
सोच रहा ऐसा भी होगा, पूछे खुद से खड़ा हुआ।।
जल बिन जीवन शून्य हो रहा, राह मुझे तुम बतलाओ।
उत्तर क्या दूंगा जो पूछे, अगली पीढ़ी जरा बता।।
बड़े पेड़ काटे लालच में, पौधे भी दम तोड़ रहे।
पहिए अब रुकने को उद्यत, आगे कैसे बढ़े बता।।
सोचसमझ करना विकासतुम,कहीं विनाश नहो जाए।
यह धरती है माता सबकी,और नहीं अब इसे सता।।


Author: MP Headlines



