रतलाम। रतलाम जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर बांसवाड़ा मार्ग पर स्थित ग्राम धामनोद में अति प्राचीन श्री कालिका माता मंदिर पर 6 जून से 12 जून 2025 तक सप्तदिवसीय सप्तकुंडात्मक शतचंडी महायज्ञ सहित श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन ग्रामवासियों के सहयोग होने जा रहा है । जिसमे कथा का श्रवण परम पूज्य गुरुदेव प. बालकृष्ण जी शास्त्री कानवन उज्जैन के मुखारबिंद से होगी
साथ ही यज्ञाचार्य प. अक्षय जी शर्मा द्वारा प्रथम दिवस प्रायश्चित पंचाग कर्म देवता आव्हान अग्नि स्थापन ,नित्य पूजन हवन कर्म के साथ रविवार 8 जुन को तीनो स्वरूपों में विराजीत महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती का सहस्त्र धारा द्वारा महाअभीषेक और 12 जून गुरुवार को भव्य गंगाजल कलश शोभायात्रा के साथ शतचंडी महायज्ञ की पूर्णाहुति करवाई जायेगी। और नगर भोज महाप्रसादी रहेगी। इस पुनीत धर्म कार्य में सभी धर्मालुजन सादर आमंत्रित है।
साथ ही यज्ञ की महिमा में यज्ञाचार्य प.अक्षय जी शर्मा ने बतलाया यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। यज्ञ ही श्रेष्ठ कर्म है। क्योंकि यज्ञों द्वारा मनुष्य ब्रह्म साक्षात्कार की पात्रता प्राप्त कर सकता है और ब्रह्म साक्षात्कार ही तो मनुष्य जीवन का अन्तिम ध्येय है। ‘महायज्ञैः यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः’ यज्ञ की उत्पत्ति ब्रह्म से ही है। आदि पुरुष परमात्मा ने सृष्टि रचना यज्ञ से ही की और उसी से वेदों के ज्ञान को प्रगट किया जो यज्ञ पूर्ति का साधन बना। ‘तस्माद् सर्व हुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे। छंदासि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्त त्माद जायत।यजु॰ 1−7
ऐहिक एवं पारलौकिक सब प्रकार के सुखों का साधन एक मात्र यज्ञ ही है। व्यक्ति एवं समष्टि की उन्नति यज्ञ द्वारा ही सम्पन्न हो सकती है। यज्ञ के महात्म्य को हमारे पूर्वजों ने समझा था। उनके यज्ञ मय जीवन की धाक सारे विश्व में थी। वे सच्चे नेता थे, मानव के पथ प्रदर्शक बने, विश्व भर के कौने 2 से मनुष्य आ आकर अपने कर्तव्य का पाठ ले जाते थे। समय का परिवर्तन हुआ, हमने यज्ञ को भुला दिया, अपना बल, वैभव, विद्या, एवं ऐश्वर्य सभी कुछ खो दिया, यहाँ तक कि दासता की जञ्जीरों में जकड़े गये।
संसार का सारा खेल मन के ऊपर निर्भर है। मन की संस्कृत अवस्था से मनुष्य जीवन को सफल बना कर आनन्द का उपभोग कर सकता है और यदि मन विकृत हुआ तो जीवन को अन्धकार मय बना कर नारकीय यातनाओं का घर बना देगा। ‘मन एव मनुष्याणाँ कारणं बन्धमोक्षयोः’
जीवन के इतने उपयोगी साधन मन के संस्कार का एक मात्र उपाय यज्ञ ही है। इसीलिए यज्ञोपदेष्टा ऋषि ने आदेश दिया “मनो यज्ञेन कल्पताम्”

Author: MP Headlines




